Tuesday, March 27, 2012

ज्यादा आमदनी पर लगाना चाहिए अधिक कर!'

इस वर्ष राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.6 फीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य हासिल करने में दबाव देखा जा रहा है।
इस समस्या को बजट के अनुसार देखा जा सकता है। इसमें अनुमान लगाया गया है कि व्यय में केवल 3.5 फीसदी बढ़ोतरी होगी और गैर-ब्याज वाले व्यय में केवल 1.4 फीसदी वृद्धि होगी, जो पिछले साल के संशोधित अनुमानों से 1.4 फीसदी अधिक है। लेकिन देश में मुद्रास्फीति जिस स्तर पर है और कर्मचारियों को महंगाई भत्ता (डीए) देने के लिए जितनी बड़ी राशि की जरूरत होगी, उससे लगता है कि गैर-ब्याज व्यय को इस स्तर तक सीमित रखना मुश्किल होगा। बजट में दूसरा अनुमान लगाया गया है कि कच्चे तेल की कीमतें करीब 90 डॉलर प्रति बैरल रहेंगी। हालांकि सरकार ने पिछले साल की बकाया सब्सिडी का ज्यादातर भुगतान कर दिया है, लेकिन 20,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी अभी बकाया है। जबकि बजट में इसका अनुमान 23,000 करोड़ रुपये लगाया गया है, जो वास्तविकता से बहुत दूर है। कच्चे तेल की कीमतें 110-115 डॉलर प्रति बैरल के बीच बनी हुई हैं, जिसके कारण तेल विपणन कंपनियों को भारी घाटा हो रहा है।

नकद बजटिंग के साथ हमेशा कुछ समस्याएं रही हैं। नकद बजटिंग के साथ समस्या यह है कि घाटे को नियंत्रण में रखने या घाटे को कम दिखाने के लिए दो-तीन कार्य होते हैं। इनमें एक यह है कि तेल विपणन कंपनियों का भुगतान स्थगित किया जाता है। जब आप यह करते हैं तो आपकी नकदी तो नहीं जाएगी, लेकिन तेल विपणन कंपनियों को बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लेना होगा। दूसरी चीज यह है कि प्रमुख करदाताओं को अग्रिम कर का भुगतान करने के लिए कहा जाता है, उन पर दबाव डाला जाता है और पैसा प्राप्त किया जाता है। आमतौर पर तीसरा उपाय वह यह करते हैं कि कॉन्ट्रक्टरों के बिलों का भुगतान नहीं करते। अगर आप इन बिलों का भुगतान नहीं करेंगे तो बाद में ज्यादा भुगतान करना होगा। इन तीन उपायों में से कोई भी सही नहीं है। मेरा मानना है कि इसमें गंभीरता नहीं बरती गई तो घाटे में बढ़ोतरी होगी। वहीं कोष में भी कमी आ सकती है। वित्त आयोग का इस साल का लक्ष्य 4.8 फीसदी है, इसलिए सरकार इसमें मामूली बढ़ोतरी कर 5 फीसदी कर सकती है। राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को 4.6 फीसदी तक सीमित रखना मुश्किल होगा।
मध्यावधि में इसका बुरा असर पडऩे की आशंका है। हम 2003-04 से 2007-08 तक राजस्व में हुई सालाना 30 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं कर सकते। प्रत्यक्ष कर के मामले में कर सूचना नेटवर्क ने बेहतर प्रवर्तन के जरिए ज्यादा धन की वसूली में मदद दी है। इसके अलावा आपके पास सेवा कर में विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। अगर आप सेवा कर के दायरे में बाहर रखी गई सेवाओं को भी शामिल करेंगे तो कर आधार में बढ़ोतरी होगी। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के 2013 तक शुरू होने की संभावना नजर नहीं आ रही है। हालांकि जीएसटी लागू होने से कर की उत्पादकता बढ़ेगी, लेकिन राजस्व उसी स्तर पर रहेगा। मैं नहीं मानता कि इससे भारी बदलाव आएगा। सरकार बकाया कर (टैक्स एरियर) के मुद्दे पर विचार कर सकती है, जो 2,00,000 करोड़ रुपये से अधिक है। इनमें से ज्यादातर मामले न्यायालयों में विचाराधीन हैं। अगर वे (न्यायालय) इन मामलों को यह कहकर निपटा देते हैं कि संबंधित पार्टियां उन पर लगाए गए कर के आधे का भुगतान कर देंगी। इससे बकाया कर कम होगा और सरकार को भी एकमुश्त राजस्व प्राप्त होगा। प्रत्यक्ष कर संहिता से भी कर व्यवस्था को साफ-सुथरा बनाने में मदद मिलेगी, लेकिन मैं नहीं मानता कि इससे पर्याप्त राजस्व सृजित होगा। मेरा मानना है कि कठिनाई के दौर में चुनौती भरे कदम उठाने पड़ते हैं।
देश में 8 लाख से अधिक आय पर मामूली 30 फीसदी कर लगता है। यहां तक कि यूरोप भी उच्च आय वर्ग पर ज्यादा कर लगाने के बारे में विचार कर रहा है। इसलिए 15 लाख रुपये से अधिक आय पर 40 फीसदी कर लगाना उचित हो सकता है। मेरे यह कहने का कारण यह है कि मध्यावधि में हमारे सामने और अधिक चुनौतीपूर्ण मुद्दे होंगे। इसलिए हमें राजकोषीय समायोजन की जरूरत है। केंद्रीय स्तर पर अगर आप राजकोषीय घाटे को जीडीपी का 4.6 रखने में समर्थ रहते हैं तो 2014-15 के बाद इसे घटाकर 1.6 फीसदी पर लाना होगा, क्योंकि सरकार को वित्त आयोग की योजना के अनुसार राजकोषीय घाटे में 3 फीसदी कमी लानी है। ऊपर से 12वीं योजना में स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाने की भारी मांग हो रही है। स्वास्थ्य के सार्वभौमिकीकरण पर गठित एक उच्च स्तरीय समिति ने सरकार को कुछ प्रारंभिक सुझाव भेजे हैं। इस पर जीडीपी के 1-1.5 फीसदी खर्च की जरूरत होगी। इसके अलावा शिक्षा का अधिकार और खाद्य सरक्षा विधेयक पर भी खर्च बढ़ेगा। मेरा मानना है कि 1.6 से 2 फीसदी वित्तीय समायोजन के लिए अतिरिक्त 3-3.5 फीसदी जीडीपी की जरूरत होगी। अतिरिक्त धन ज्यादा कर के जरिए पैदा नहीं किया जा सकता है। अगर आप ये सुधार करते हैं तो आपको 2-2.5 फीसदी अंक मिल जाएंगे। 2007-08 ऐसा वर्ष था, जब कर और जीडीपी का अनुपात सबसे अधिक था। यह केंद्र और राज्य दोनों में जीडीपी का 18 फीसदी रहा। अकेले केंद्र का अनुपात 11 फीसदी था। यह गिरकर 15 फीसदी पर आ गया है। 2007 के स्तर पर पहुंचने के लिए केंद्र को अतिरिक्त 2.5 फीसदी अंक और राज्यों को 1 फीसदी बढ़ोतरी करनी होगी।
मेरा मानना है कि सरकार के लिए तत्काल व्यय कम करने की योजना बनाना जरूरी है, विशेष रूप से बढ़ती सब्सिडी के संबंध में। सभी के लिए मुफ्त की योजना नहीं चल सकती, आपको लक्षित वर्ग पर केंद्रित होना पड़ेगा। इस लक्ष्य को राजनीतिक इच्छा शक्ति विकसित करने की जरूरत है। अगर हम सभी के लिए अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य चाहते हैं तो हमें सब्सिडी में कटौती करनी होगी और लक्षित वर्ग पर ध्यान केंद्रित करना होगा।