Tuesday, March 27, 2012

क्या है जीएएपी?

जीएएपी (जनरली एक्सेप्टेड अकाउंटिंग प्रिंसिपल) अकाउंटिंग का एक सामान्य तरीका होता है। कंपनियां अपना फाइनेंशियल स्टेटमेंट तैयार करने के लिए इसका सहारा लेती हैं। जीएएपी, पॉलिसी बोर्ड अर्थात नियामक प्राधिकरणों और दूसरी अकाउंटिंग सूचनाओं को तैयार करने के सामान्य तरीकों के मिलेजुले रूप को कहा जाता है।

कंपनियों को ऑडिटिंग कराने के लिए जीएएपी का विकल्प अपनाना पड़ता है ताकि फाइनेंशियल स्टेटमेंट जारी करने में निरंतरता बनी रहे और निवेशकों को कंपनी के शेयर खरीदने या बेचते समय उनका मूल्यांकन करने में कोई दिक्कत ना आए। इससे कंपनी और निवेशक दोनों को ही काफी फायदा होता है। कंपनी को जहां अपनी वित्तीय सूचना जारी करने में मदद मिलती है वहीं निवेशकों को किसी कंपनी के शेयरों के बारे में अनुमान लगाने में आसानी रहती है।

कैपिटल बाजार में कंपनियों को नियमित रूप से अपनी वित्तीय स्थिति की जानकारी देनी होती है। निवेशक इसके माध्यम से इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कंपनी की वित्तीय स्थिति क्या है और इसके शेयरों में निवेश करने में कितना फायदा या रिस्क हो सकता है। इसके अंतर्गत कंपनी की कमाई, मुनाफा, बैलेंस शीट और कंपनी के शेयरों के आकलन को शामिल किया जाता है। अमेरिका में कंपनियों के लिए यह अनिवार्य है कि वे फाइनेंशियल डाटा तैयार करते समय जीएएपी का इस्तेमाल करें।

क्या है मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी?

इसे रिजर्व बैंक ने 2011-12 की मौद्रिक नीति में शुरू किया। मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) के तहत बैंक, रिजर्व बैंक से कर्ज ले सकते हैं जिसकी ब्याज दर 8.25 फीसदी तय की गई है। अगर लिक्विडिटी में काफी ज्यादा कमी आ गई है तो बैंक इसके तहत कर्ज ले सकते हैं।

हालांकि बैंकों के पास एलएएफ रेपो रेट पर रिजर्व बैंक से कर्ज लेने का विकल्प उपलब्ध है लेकिन एलएएफ और एमएसएफ में कुछ अंतर है। इस सुविधा के तहत बैंक नेट मांग और टाइम लायबिलिटी के एक फीसदी के बराबर कर्ज ले सकते हैं।

हालांकि एसएम एफ के तहत जहां 8.25 फीसदी की दर पर कर्ज मिलता है वहीं एलएएफ रेपो रेट के तहत बैंकों को 7.25 फीसदी की दर पर कर्ज मिल जाता है। बैंक को एलएएफ और एमएसएफ के तहत रिजर्व बैंक से कर्ज लेने के लिए एसएलआर को 24 फीसदी बनाए रखना जरूरी है।

वाणिज्यिक बैंक रिजर्व बैंक से एमएसएफ के तहत रातभर के लिए कर्ज ले सकते हैं। इसके तहत लिए जाने वाले कर्ज की रकम कम से कम एक करोड़ रुपये तक हो सकती है। इससे बैंकों को नकदी की कमी होने पर काफी मदद मिलती है। अगर बैंक के पास अचानक से नकदी की कमी हो गई है तो वह इस सुविधा का लाभ उठाकर केंद्रीय बैंक से 8.25 फीसदी की दर पर कर्ज ले सकता है।